इक दिन फुरसत पायी
इक दिन फुरसत पायी
1 min
219
ज़िन्दगी से लम्हे चुरा
बटुए में रखता रहा!
फुरसत से खर्चूंगा
बस यही सोचता रहा।
उधड़ती रही जेब
करता रहा तुरपाई
फिसलती रही खुशियाँ
करता रहा भरपाई।
इक दिन फुरसत पायी
सोचा .......
खुद को आज रिझाऊं
बरसों से जो जोड़े
वो लम्हे खर्च आऊं।
खोला बटुआ..लम्हे न थे
जाने कहाँ रीत गए!
मैंने तो खर्चे नहीं
जाने कैसे बीत गए !!
फुरसत मिली थी सोचा
खुद से ही मिल आऊं।
आईने में देखा जो
पहचान ही न पाऊँ।
ध्यान से देखा बालों पे
चांदी सा चढ़ा था,
था तो मुझ जैसा पर
जाने कौन खड़ा था।
