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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Abstract

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

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जिंदगी की सच्चाई

जिंदगी की सच्चाई

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जिंदगी के लम्हो में साथ साथ जिया हमने

गांव की गलियो में पचपन की शरारत

के दिन बीते।।

साथ साथ स्कूल गए 

ना जाने कब बचपन पीछे

छूट गया युवा यौवन में

दुनिदारी समाज की राहों

देखे।।

ना जाने कब ऐसे दिन आये

एक दूजे के बिन लम्हा भी

वर्षो जैसा प्यार इसी को

कहते है दुनियां ने बतलाते।।

वह भी मेरी चाहत थी उसका

अरमान मैं हम दोनों के बीच

नही था कोई सीमा रेखा का

बंधन।।

दुनियां को ना जाने कैसे रास

नही आयी हम दोनों की दुनियां

मोहब्बत की अंगड़ाई।।

लाख कोशिशें दुनियां ने की

करने को जुदाई दुनियां हारी

जीते हम साथ साथ कब्र में

सोए हम।।                 


जाने कितनी रूहे नीद में खामोश यहां

देख रहा है खुदा अपने बंदों को बैठे मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे से मौन।।


दुनियां में जब जागे जिंदा थे

जाने कितने ही अरमान इरादे थे

कुछ परवान चढ़े कुछ साथ दफन हुए।।

नीद टूटने का इंतजार जगने

जिंदा होने का इंतज़ार शायद मिल जाए

दुनियां में इंसानी परिवार समाज।।।               


कायनात के कयामत के दिन आएंगे 

जीजस खुदा ईश्वर फिर अपना फरमान सुनाएंगे

जब जागे थे दुनियां इस नीद से थे अंजान।।


जिस्म जान की खुशियों की

खातिर जाने क्या क्या किया

उपाय खुद को बादशाह समझते

दुनियां मुठ्ठी में करने की चाह।।


गुजर गए जाने कितनी ही राह

करते खुद खुदा को शर्मसार।।

खामोश पड़े वीरानों में जिस्म गल गया हड्डी बची नही बच गया 

दुनियां के लम्हो का लेखा जोखा

कब्र में रूहानी अंदाज़।।

रूहे अंजान नही अपने जिस्मानी

लम्हो कदमों से गहरी नींद में भी बाते करते दुनियां में अपने जिंदा रहते

क्या खोया क्या पाया जज्बात।।



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