जिंदगी की राह
जिंदगी की राह
जिस राह पर
हर बार मुझे
अपना कोई
छलता रहा।
फिर भी
न जाने क्यूँ मैं
उसी राह पर
ही चलता रहा।
सोचा बहुत
इस बार
रोशनी नहीं
धुँआ दूँगा।
लेकिन मैं दीपक
था फ़ितरत से
जलना था
जलता ही रहा।
जिस राह पर
हर बार मुझे
अपना कोई
छलता रहा।
फिर भी
न जाने क्यूँ मैं
उसी राह पर
ही चलता रहा।
सोचा बहुत
इस बार
रोशनी नहीं
धुँआ दूँगा।
लेकिन मैं दीपक
था फ़ितरत से
जलना था
जलता ही रहा।