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Namrata Singhal

Abstract

4.8  

Namrata Singhal

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ज़िन्दगी और एहसास

ज़िन्दगी और एहसास

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दिल और दिमाग़ की इस कश्मकश में

ज़िन्दगी कि गाड़ी बड़ी रफ़्तार से चल रही है

उतना तो हम जीए ही नहीं 


जितना हम हर रोज़

बेवजह मरते जा रहे हैं

लोग क्या कहेंगे इस बात पर 

हम इतना उलझते जा रहे हैं

दिल करना कुछ चाहता है

हम कुछ और ही करते जा रहे हैं


कभी लगता है जिन्दगी ही बेकार है

तो कभी लगता है हम 

जिन्दगी जीने के लिए बेकरार है 

कभी लगता है सब अपने ही यार है


फिर लगता है इनमें भी छिपे गद्दार है 

कभी लगता है लोगो में बहुत प्यार है

तो कभी लगता है रिश्तों में सिर्फ दरार है 

कभी लगता है कितना प्यारा ये संसार है 

तो कभी लगता है ये संसार बस संसार है।


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