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Ishita G.

Tragedy

3  

Ishita G.

Tragedy

LIFE AND PROGRESS {hindi}{poem}

LIFE AND PROGRESS {hindi}{poem}

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जीवन में कितना आगे बढ़ गए,

की जिसने जन्म दिया उसे रोता छोड़,

दूसरों पर आँसु बहाने लगे।

अपनो को पीछे छोड़,

खुद आगे बढ़ने लगे।

जीवन की ऊचाइयाँ देखने की चाह में,

खुदगर्ज़ बनते चले गए। 

खुद बड़े बन गए तो माता-पिता को छोटा समझने लगे।

सच में मानव जात ने कितनी प्रगति की है,

जो हर बार साथ खड़ा रहा उसका आभार मनने की जगह उसका अनादर करने लगे।


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