जी चाहता है
जी चाहता है
फिर मुस्कुराने को जी चाहता है
आके भर लो बाजुओं में कि
फिर मुस्कुराने को जी चाहता है l
मुद्दत से एक प्यास है दबी दबी सी,
कि अब सागर पीने को जी चाहता है l
लबों पे फिर सजा दो मेरे वो नगमे,
फिर तुझे गुनगुनाने को जी चाहता है
तु इस क़दर है मुक़द्दस सा मेरे सनम,
तुझे रूह में उतारने को जी चाहता है l
पलकें बरस के बरसों थक गयीं,
अब तेरे प्यार में भींगने को जी चाहता है l
न खींच कोई लकीर इस उल्फ़त में,
अब हद से गुज़र जाने को जी चाहता है l
फिर से शमा जला बैठी है दामिनी,
तेरी आग़ोश में फिर पिघलने को जी चाहता है l

