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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance Classics Fantasy

जगमगाती शाम

जगमगाती शाम

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कितनी हंसीन थी वो झिलमिलाती शाम 

जब पिये थे हमने तेरी नजरों से जाम 


कातिल निगाहों का सरूर गजब चढ़ा था 

ये दिल तेरे इश्क़ की ओर दो कदम बढ़ा था 


शाम जगमगाती सी थी हवा पुरवाई सी थी 

रह रह करके तेरी घनी जुल्फें लहराई थी 

इस दिल में जगी कुछ मुहब्बत अलसाई सी 

तू और भी खूबसूरत लग रही थी घबराई सी 

जब कातिल निगाहों से तीर चलने लगे 

लब भी मुस्कुरा कर धीरे से खुलने लगे 


इशारों ही इशारों में हम बात करने लगे 

मुहब्बत की तान पर दिल धड़कने लगे 


आज भी बहुत याद आती है वो रंगीन शाम 

होठों पे आज भी सज रहा है बस तेरा नाम 


नहीं है पता कि क्या होगा इश्क का अंजाम 

इस दिल को रहेगा तेरा इंतजार उम्र ए तमाम।


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