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Bhagirath Parihar

Romance

4  

Bhagirath Parihar

Romance

जब तुम मेरे पास नहीं होती

जब तुम मेरे पास नहीं होती

2 mins
416


जब तुम मेरे पास नहीं होती 

फिर भी मेरे आसपास होती हो 

शाम आता हूँ घर

छत से उतरती धूप कहीं तुम्हें खोजती है अपने घर में 

खाली–खाली सा घर 

सूना-सूना सा मन देखकर 

धूप निकल जाती है बाहर 

बालकनी में पड़ी एक खाली चेयर

आभास होता है कि तुम उस पर बैठी हो,

 दूर कहीं देखते हुए, खाली-खाली नजरों से

 मन तुम्हारी अनुपस्थिति में भी तुम्हें देख लेता है

 साकार हो उठती है तुम्हारी मूरत चेयर पर 

 क्यों बैठी हो गुमसुम सी?

 

मुझे लगा, जहाँ भी तुम बैठी होगी 

ऐसे ही गुमसुम सी मेरे ख्यालों में 

जैसे मैं तेरे ख्यालों में गुम हूँ 

तुम नहीं हो, लेकिन ख्यालों में बराबर बनी रहती हो

सूरज अस्त हो गया है 

बालकनी से उठकर बैठक में आ जाता हूँ 

और टीवी ऑन कर देता हूँ 

 शायद तुम भी टीवी के सामने बैठी कोई सीरियल देख रही होगी 

 साथ-साथ तो हम टीवी में फिल्म देखा करते थे 

यहाँ मेरे सामने न्यूज चैनल है

 बकवादी बहस कर रहे हैं,

 एक साथ बोल-बोल कर उन्माद भरा शोर मचा रहे हैं 

 एंकर तो करीब-करीब चिल्ला रहा है 

 इसे बंद करना ही ठीक होगा।

 

खाने का ख्याल आता है कि अब खाना खा ही लेना चाहिए 

किचन में जाता हूँ तो तेरा एहसास गहरा जाता है कि 

कितने जतन से तुम खाना बनाती थी मेरे लिए, हमारे लिए 

फ्रिज में देखता हूँ कुछ पड़ा हो खाने को 

लेकिन वह भी खाली

तुम्हें गए भी काफी दिन हो गए हैं

सुबह का गर्म किया दूध और ब्रेड 

निकाल कर दूध से खाने लगा 

बेस्वाद और बेमजा 

स्वाद कहीं तेरे हाथों में तो नहीं था

कहीं तुम्हारे प्यार में तो नहीं था


खैर, अब लेटा जाये 

मोबइल को हाथों में लिए सोचता हूँ तुझे कॉल कर ही लूँ 

कुछ देर के लिए ही सही अकेलेपन का एहसास तो दूर होगा 

वीडियो कॉल किया और तुम्हारा मुस्कराता चेहरा सामने था 

मैं बोलूं उसके पहले ही तुम बोल उठी कैसे हो

तुम्हारे बिना अस्तव्यस्त हूँ 

अब तुम बड़े हो गए हो अपने को संभालो 

तुम्हारे सामने तो मैं निरा बच्चा हूँ 

 लव यू माय चाइल्ड 

 लव यू टू माय स्वीटी 

 चलो अब सो जाओ सुबह दफ्तर जाना है गुड नाईट ओके 

और ऑफलाइन हो गई और मैं करवटें बदलते-बदलते 

तुम्हारे ख्यालों के साथ नींद की आगोश में चला गया।  



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