जब से तुम गये
जब से तुम गये
मेरे साजन हैं उस पार
शीशे पर पड़ा ज़र्द चेहरा उभर आया और वहीँ ठहर गया,
बहुत धोया,बहाया, जलाया, पर राख नहीँ हुआ।
मैं, मैं नहीं रही जब से गए तुम उस पार,
इस पार अपनी केंचुलियाँ उतार दी मैंने अब,
बाहों में वो शक्ति नहीँ रही अब,
चेहरे की झुर्रियां कहने लगीं सब,
पथराई हुई आंखों में ठहरा वो आँसू,
इस आस में ना निकल सका कि,
उस पार गर तुम मिल जाओ तो
आने का वादा कर लूँ,
जलती धूप में पाँव पे छाले खाकर भी
सदियों से लंबा सफर तय कर लूँ।

