इश्क़ की निशानी देखकर
इश्क़ की निशानी देखकर


हैराँ हुआ मैं ज़ूद-ए-पशेमानी देखकर
दर्द-ए-दिल, आँखों में भरा पानी देखकर
दाम-ए-ज़ुन्नार-ओ-ज़िन्दगी को तोड़ दें
जी चाहता है दरया तेरी रवानी देखकर
फिर हँस दिए हम गीराई-ए-दाम पे तेरी
ऐ क़िस्मत तेरी ये कारस्तानी देखकर
नंग-ए-वजूद को छुपाने की करते हैं दवा
हम रौज़न-ए-पैराहन की फ़रावानी देखकर
अपनी लहद को फिर देखते हैं पुर-हसरत
जलता है जिग़र मंज़र-ए-आँजहानी देखकर
इंतज़ार-ए-क़ज़ा को ही गोया कहते हैं हयात
अहसास हुआ आज अपनी ज़िंदगानी देखकर
ग़मज़ा-ए-लफ्ज़ तेरे लबों पे नहीं ऐ दोस्त
शिशदर हूँ मैं तेरी आशुफ़्ता-ज़बानी देखकर
वो क़ातिल बख़्श दे मुझे यक़-शब ज़िन्दग़ी
वजह ढूंढता हूँ उसकी ये मेहबानी देखकर
ताउम्र न फिर तेरे कूचे में रखा क़दम बजौफ़
इक रोज़ वो महफ़िल की सरगरानी देखकर
इस क़दर शौक है मुझको ज़ख्म खाने का
बरु-ए-क़ार हूँ, ख़ंजर-हाए-निहानी देखकर
याद आता है इक क़िस्सा-ए-वफ़ा अब भी
ताक़-ए-निसियाँ पे सजी, इश्क़ की निशानी देखकर