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kavi manoj kumar yadav

Abstract

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kavi manoj kumar yadav

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इश्क का बीमार हो जाना।

इश्क का बीमार हो जाना।

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नहीं आसां जमाने में किसी का प्यार हो जाना।

कभी जानूं कभी जानम कभी दिलदार हो जाना।

सिखाती है मुहब्बत आदमी को जिंदगी में ही।

कभी मीठा कभी तीखा कभी तलवार हो जाना।

मुहब्बत का मुकदमा जब लड़ोगे तुम तो सीखोगे।

कभी मुजरिम कभी बादी कभी सरकार हो जाना।

घड़ी भर पास तो बैठो सिखाएंगे तुम्हें भी हम।

कभी कश्ती कभी साहिल कभी पतवार हो जाना।

हथेली पर कभी तुम जान लेकर तो चलो अपनी।

तभी जानोगे क्या है इश्क का बीमार हो जाना।


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