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Archana Verma

Abstract

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Archana Verma

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इस बार की नवरात्री

इस बार की नवरात्री

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इस बार घट स्थापना वो ही करे

जिसने कोई बेटी रुलायी न हो

वरना बंद करो ये ढोंग 

नव दिन देवी पूजने का 

जब तुमको किसी बेटी की चिंता सतायी न हो  


सम्मान,प्रतिष्ठा और वंश के दिखावे में 

जब तुम बेटी की हत्या करते हो 

अपने गंदे हाथों से तुम ,उसकी चुनर खींच लेते हो

इस बार माँ पर चुनर तब ओढ़ना 

जब तुमने किसी की लज़्ज़ा उतारी न हो 

और कोई बेटी कोख में मारी न हो 

वरना बंद करो ये ढोंग 

नव दिन देवी पूजने का 

जब तुमको किसी बेटी की चिंता सतायी न हो 


जब किसी बाबुल से उसकी बेटी दान में लाते हो 

चार दिन तक उसे गृह लक्ष्मी मान आडम्बर दिखलाते हो 

फिर उसी लक्ष्मी पे अत्याचार बरसाते हो 

और चंद पैसों की खातिर उसे अग्नि को सौंप आते हो 

इस बार हवन पूजन तब करना 

जब कोई बेटी तुमने जलायी न हो 

वरना बंद करो ये ढोंग 

नव दिन देवी पूजने का 

जब तुमको किसी बेटी की चिंता सतायी न हो 


कितनी सेवा उपासना कर लो तुम "माँ "की

वो तुमको देख पछताती होगी 

तुम्हारी आराधना क्या स्वीकार करेगी 

वो तुम्हारे कर्मों पर नीर बहाती होगी 

वो भी तो एक "बेटी" है 

क्या तुमको तनिक भी लज़्ज़ा न आती होगी 

इस बार माँ के दरवार में तब जाना 

जब तुमको "उस बेटी" से नज़र मिलाते लज़्ज़ा आती न हो

वरना बंद करो ये ढोंग 

नव दिन देवी पूजने का 

जब तुमको किसी बेटी की चिंता सतायी न हो  


इस बार घट स्थापना वो ही करे

जिसने कोई बेटी रुलायी न हो

जिसने कोई बेटी रुलायी न हो

 वरना बंद करो ये ढोंग 

वरना बंद करो ये ढोंग ... 



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