इन्सान
इन्सान
ना कोई जाति है, न कोई धर्म है !
अब तक जितना सीखा उसका यही मर्म है !
खुद खुश रहना है, और लोगो में खुशियाँ लुटाना है !
क्यूंकी यहाँ पर नहीं किसी का स्थाई ठिकाना है !
एक न एक दिन तुझको मुझको हम सब को
एक ही राख में खाक हो जाना है !
उस राख से कौन किस धर्म का है, किस जाति का है
न कोई पहचान पायेगा ना ही पहचान पाया है !
क्यूंकि विधाता ने जाती और धर्म
नहीं केवल इंसान बनाया है !