इक नज़र [गज़ल ]
इक नज़र [गज़ल ]
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मंदिर मस्जिद सब कुछ अब वीरान नज़र आते हैं!
अमीर हो या गरीब सब परेशान नज़र आते हैं!!
मुझे बताओ रोज़ खुदा को कौन याद करता है!
अब खुद को खुदा समझने वाले इंसान नज़र आते हैं!!
हमने भी अब दूसरों के घर आना जाना छोड़ दिया!
अब तो अपनों को भी हम मेहमान नज़र आते हैं!!
बहुत पहले इस शहर में रौनक दिखाई देती थी!
अब सूनी गलियां और बड़े मकान नज़र आते हैं!!
ये अलग बात हैं कि सब ख़्वाब अधूरे रह गये!
फिर भी ख़्वाबों में हमको आसमान नज़र आते हैं!!
इक रोज़ चला गया था मैं अमीरों की बस्ती में!
जितना ऊँचा नाम हैं उतने बेईमान नज़र आते हैं!!