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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Inspirational

हर महफ़िल से अनजाना हूं

हर महफ़िल से अनजाना हूं

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हर महफ़िल से अनजाना हूं

मैं बड़ा ही पागल दीवाना हूं

लोगों ने सताया है,जीभरकर,

मैं ग़मों का गुजरा पैमाना हूं


मेरी सादगी ही मेरा गुनाह है,

मैं पानी का एक सीधा पाना हूं

हर महफ़िल से अनजाना हूं

हर कोई रूठा हुआ है मुझसे


हर कोई छूटा हुआ है मुझसे

मैं सत्य का एक टूटा अफ़साना हूं

हर कोई मुझसे ये सवाल पूँछता है,

रिश्तों को गिराने का ख़्याल पूँछता है,


मैं टूटे हुए रिश्तों का गीत पुराना हूं

हर महफ़िल से अनजाना हूं

सब चाह रहे है,सोने को

छोड़ रहे है,सोने से मन को


सोने का मालिक न सही,

में मिट्टी का एक तराना हूं

सब इल्जाम लगाते है,मुझपर

सब मुकदमा करते है,मुझपर


मैं सादगी का सच्चा नाना हूं

आँधी आये या फिर तूफ़ां आये

मैं टूटे हुए दरख़्तों का तराना हूं

हर महफ़िल से अनजाना हूं


बड़ी नाव नहीं है, मेरी दरिया में

कागज की कश्ती है, मेरी दरिया में,

मेैं कागजों का साहिल पुराना हूं

सब समझते है, मैं पत्थर हूं,


नहीं रखता कोई मोम भीतर हूं,

मैं मोम से ज्यादा कोमल ताना हूं

हर महफ़िल से अनजाना हूं

बोलता भले में बहुत कटू हूं,


पर सच बोलता सोलह आना हूं

सब काम यहां स्वार्थ से जुड़े है,

सब रिश्ते यहां स्वार्थ के टुकड़े है,

पर में गाता निःस्वार्थता का गाना हूं


मैं नही करता, कोई काम बेगाना हूं

सब यहां पर दिखावा करते हैं,

लोगों की आंखों में मिर्ची डाला करते है

पर में दिखावे का नहीं गाता गाना हूं,


हर महफ़िल से अनजाना हूं

मैं अपनी ही मौज का तराना हूं।


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