हर बार दिल की सुनी
हर बार दिल की सुनी
हर बार दिल की सुनी, हर
बार अपनी औऱ
उंगली जब जब उठी,
चुप रहने कि आदत पड़ सी
गईं पलट कर
जवाब देना नहीं आता,
हर बार कुछ नया करना
नहीं आता जलता
सूरज और दिल को
तड़पना आता, फिर भी
दिल से दिल कि सुनी,
तप्त थी हर ख़्वाहिश मन
में, छल, कपट,
विभोर, नहीं गहरा था जिसमें,
हर बार दिल कि सुनी,
हर सरीखों से यहीं अंजाम
मिला, छल, कपट, विभोर, कृन्दन
मन, करुणा, दया, स्वभाव,
शांत, हर बार रहा
हर बार दिल की सुनी,
हर बार अपनी
और उंगली जब जब उठी,
चुप रहने की
आदत पड़ सी गईं।।
