STORYMIRROR

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

4  

हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

हंसी

हंसी

1 min
5

जिसके पीछे पीछे सब ही भागते 

सुबह से शाम तलक जिसका मुंह ताकते 

बहुत करते हैं जिसकी मनुहार 

लेकिन वो तो अकड़कर बैठी है , यार 

न जाने किस बात पर खफा है

दूर दूर रहने का उसका फलसफा है 

पर हम भी कहां मानने वाले हैं 

प्रेम के रंग में उसे रंगने वाले हैं 

कब तक उदास बैठी रहेगी ये "हंसी" 

आज हमारे अधरों पे बिराजेगी ये हंसी 

वैसे उसकी जगह और भी कई हैं 

आंखें भी उसके रंग में रंग गई हैं 

गालों को देखो, कैसे शर्म से लाल हो रहे हैं 

देख देख उन्हें सब लोग बेहाल हो रहे हैं 

उमंगों में भी हंसी नजर आनी चाहिए 

कुछ और आये या ना आये सबको

पर हंसी की कदर करनी आनी चाहिए । 

होली पर बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance