हमारा पर्वत प्रेम
हमारा पर्वत प्रेम
पर्वतों से मुझे शुरू से ही बहुत प्यार था।
कभी तो हम पहाड़ों के ऊपर रह लिए।
रोज-रोज पर्वतों के ऊपर से सड़क को देखने का काम भी हम कर लिए।
क्या मस्त पहाड़ियां थी एक पहाड़ी पर हॉस्पिटल और एक पर मकान था।
नीचे चर्च और ऊपर दूसरी पहाड़ी पर स्टाफ क्वार्टर्स थे।
मस्त मनोहारी दृश्य
देख कर मन खुशी से नाच उठता था।
जब गांव का चक्कर लगाते तो नीचे की पहाड़ी पर जाकर ऐसा लगता
जैसे सर्पाकार पहाड़ियां चल रही है पर हम उन पर चल रहे हैं
बहुत अद्भुत नजारा होता था।
समय में सुहाना होता था।
1977 का जमाना था।
स्मृतियों में छप गया टॉडगढ़ का वह जमाना।
आज भी हम उसको भुला ना पाए, कितना प्यारा है जमाना था।
जब हमारा विदेश भ्रमण हुआ स्विट्जरलैंड में जुंगफू पहाड़ पर
चढ़कर जो बर्फ की वादियों के हमें दर्शन करे।
वहां घूमने के लिए बहुत मजे करे।
बहुत खेले बहुत लगे करे।
हम तो उन बर्फीले पहाड़ों के प्यार में ही पड़ गए।
ऐसा लगता था कि नहीं रह जाए।
मगर जो संभव नहीं है कैसे किया जाए।
मधुर स्मृतियां दिल समेटे हुए हम वापस अपने घर आ गए साथ में जूंगफु की
मधुर स्मृतियां साथ ले आए।
वापस उस जगह जाने का वादा कर हम अपने घर चले आए।
इस तरह पर्वतों से प्रेम का सिलसिला यह पुराना है
अब घुटनो ने जवाब दे दिया है।
गिरनार जी और शिखर जी की यात्रा करनी है देखते हैं
भगवान हमको कब बुलाता हैं,
और इतनी हिम्मत देते हैं कि हम उस पहाड़ पर चढ़कर उनके दर्शन कर आए
और अपनी मधुर स्मृतियों में उन्हें समेट कर ले आए।
मन में आशा ही नहीं विश्वास भी है एक दिन
हम जरूर उन तीर्थ स्थानों के दर्शन करके आएंगे।
और अपना दर्शन का सपना पूरा कर आएंगे।
