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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Tragedy

हम दोनों

हम दोनों

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कभी वो भी दिन थे जब 

हम दोनों घंटों बतियाते थे 

हाथों में हाथ डाले हुए 

पार्क का चक्कर लगाया करते थे 

रात में छत पर बैठकर 

तारे गिना करते थे । 

तब ये मोबाइल नहीं था 

सिर्फ प्यार था हम दोनों के बीच 

सारी दुनिया की बातें करते थे 

मेरी हर बात पर तुम 

कितनी खुश हुआ करती थी 

मेरे सीने से लगकर 

सपनों की दुनिया में सैर करती थी । 

मगर अब समां एकदम बदल गया 

जबसे ये मोबाइल निगोड़ा 

हम दोनों की जिंदगी में आ गया 

अब हमारी दुनिया अलग अलग हो गई 

मैं अपने मोबाइल में खो गया 

और तुम अपने मोबाइल में खो गई 

तुम्हारी सोशल मीडिया की दुनिया 

मेरी दुनिया से एकदम अलग है 

दोनों में कोई तालमेल नहीं 

अब तो बातें किए हुए न जाने 

कितने दिन गुजर जाते हैं 

एक ही छत के नीचे रहते हुए हम दोनों 

अजनबी की तरह नजर आते हैं 

क्या इसके लिए केवल मोबाइल दोषी है ? 

कहीं ऐसा तो नहीं कि 

प्यार की गंगा जो अनवरत बहती थी

वह अब मरुस्थल बन गई है 

चाहतों का समंदर 

जो कभी उछालें मारता था 

अब सूख सा गया है 

वो हंसी ठिठोली की रिमझिम सी बारिश 

अब होनी बंद हो गई है 

अब हम दोनों 

हम नहीं रहे, मैं बन गए हैं । 

आओ , फिर से एक शुरुआत करें 

मोबाइल को कचरा पात्र में डालें 

और फिर से तारों की गिनती 

साथ साथ करें । 



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