हलकान हुए फिरते हो
हलकान हुए फिरते हो


उसके चेहरे की तबस्सुम के लिए
किस कदर हलकान हुए फिरते हो।
नफ़रतो को मिटाने के लिए जहाँ से
खुद की जान की क्यूँ जान लिए फिरते हो।
उसकी नाराज़गी का सुन कर
कितने परेशान हुए फिरते हो।
मुहब्बत को शिद्दत से निभाने के बाद भी
इतने तन्हा तन्हा क्यूँ फिरते हो।
ज़माने भर की मज़लूमी चेहरे पर अयाँ है
खुद को ये क्या बनाये फिरते हो।
ऐसी भी क्या आशनाई "सुबूर"
सब कुछ जान के भी अनजान बने फिरते हो।