हिस्सों में बंटी ज़िन्दगी
हिस्सों में बंटी ज़िन्दगी
हर कोई अपने हिस्से में, मुझे थोड़ा थोड़ा चाहता है
हर कोई मुझसे मेरी ज़िन्दगी, थोड़ी थोड़ी माँगता है
कोई सुबह की किरणों पर
तो कोई मेरी शब पर हक़ चाहता है
कोई मेरी ख़ुशी में शरीक होना चाहता है
तो कोई मेरे ग़म को अपनाना चाहता है
कोई चंद पल की उम्मीद रखता है
तो कोई साथ उम्र भर का चाहता है
कोई सवाल बन इतराता है
तो कोइ जवाब के मायने चाहता है
कोई ख़्वाब का पता दे, लापता हो जाता है
तो कोई हक़ीक़त बन रूबरू हो जाता है
कोई झूठ से नक़ाब हटाता है
तो कोई सच को झूठ बताता है
कोई ज़िन्दगी का सरमाया बन साथ चलता है
तो कोई साया होते हुए भी तन्हा छोड़ जाता है
ज़र्रा ज़र्रा ज़िन्दगी का, सब के साथ जीता हूँ मैं
मगर फिर भी तन्हाई के समुन्दर में, डूबा रहता हूँ मैं
ख्वाहिशें है कुछ, जो अब भी अधूरी हैं
बादल का इक टुकड़ा, अब भी चाहता हूँ मैं
ज़िन्दगी की किताब में, एक ताज़ा नज़्म लिखना चाहता हूँ
ज़िन्दगी का एक हिस्सा, अपने लिए भी चाहता हूँ
ज़िन्दगी का एक हिस्सा, अपने लिए भी चाहता हूँ मैं
क्यूंकि हर कोई अपने हिस्से में, मुझे थोड़ा थोड़ा चाहता है!