हिंदी भाषा और हम
हिंदी भाषा और हम
हिंदी हमारी है मातृभाषा,
है विस्तृत भू-भाग की भाषा।
अनेक हैं उपभाषाएं इसकी,
बड़ा विस्तृत परिवार है इसका।
साहित्य-संस्कृति का मूल है ये,
सब भाषाओं के शब्दों को अपनाती।
नये प्रतिमान ये गढ़ती जाती।
बड़ा विशाल शब्द-कोश है इसका,
इतना सम्पन्न और है किसका।
जनसंपर्क की भाषा न्यारी,
अति मधुर श्रवण सुखकारी।
वैज्ञानिक शब्दावली से है संपन्न,
राजकाज की भाषा गई बन।
लिपि इसकी कहलाती देवनागरी
सुंदर सुकुमारी है ये रस की गागरी।
किसी भाषा से नहीं बैर इसका,
सहोदर सम रखती ध्यान सबका।
अखिल विश्व करे सम्मान इसका,
कई देशों में प्रथम स्थान इसका।
फिर भी न बन भाई ये राष्ट्र की भाषा,
देख-देख अति होती है हताशा।
माना अंग्रेजी है आज की जरूरत,
पर हम कैसे हो गए इतने बैगेरत।
क्यों इसे बोलने में हैं शरमाते,
टूटी-फूटी अंग्रेजी बोल इतराते।
इसके बिना बोलो क्या पहचान है अपनी,
यही हमारी साहित्य- संस्कृति की जननी।
जननी का हम अपमान करें क्यों?
इसको अपनाने में संकोच करें क्यों?
आओ मिल अभियान चलाएं
हिंदी को राष्ट्रभाषा का पद दिलवाएं।