है पतंग भी सम्मानित
है पतंग भी सम्मानित
अपनी ही कटी पतंग के पीछे दौड़ना,
आसमान में उसके ऊपर से नज़रें न हटाते हुए,
गलियां बदलना।
पैरो में चप्पल न हो परवाह नहीं,
किसके आसपास से गुजरे पता नहीं,
कदम सधे हैं या नहीं ये कौन सोचे,
लक्ष्य पाने को हमें कोई न रोके।
पा ही लेते हैं उसे हम येन केन प्रकारेण,
क्योंकि पांच रुपये की पतंग भी है इक सम्मान धन।
है न?