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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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हाइकु-पापा की परी

हाइकु-पापा की परी

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पापा की परी

आसमां में उड़ती

खुश रहती।


बड़े निराले 

मेरे प्यारे से पापा

जान लुटाते।


मुझे बुलाते

घर आते पहले

लिपट जाती।


पापा की जान

पापा का स्वाभिमान

मैं ही उनकी


जब गुस्साते

सहम सी जाती मैं

बाँहों में लेते।


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