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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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गरीब

गरीब

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गरीब मुझे बड़े प्यारे लगते है

दिल के अच्छे वो सारे लगते है

ना किसी से गिला ना किसी से शिकवा

वो तो मुझे आसमां के तारे लगते है

अमीरों से अपनी बनती नहीं है

गरीब ही मुझे दुलारे लगते है

एक तरफ कुत्तो को पालना

दूजी तरफ गरीबो को भगाना

ये सब ढकोसले बेचारे लगते है

कुछ नहीं है विजय के पास

फिर भी दिल के टुकड़े हमारे लगते है

ये नेता लोग केवल बाते ही करते है

गरीबी की जगह गरीबो के

हटाने के नारे लगते है



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