गंगा
गंगा
क्या कोई सुनेगा मेरी भी बात
क्यों है दूर- दूर तक छाई वीरानी
सूखे पनघट,टूटे नाव
नहीं नदी का नाम - निशान
क्यों हूँ आज मैं गन्दी,दूषित
अपने ही लोगो से
रूठी वीरान “गंगा “
नहीं रही अब मैं वेदों की महान गंगा
भैरव की शीर्ष की शोभा
माँ के समान पूजनीय गंगा
कभी थी में देश की रक्त वाहनी
भागीरथ की कुल की स्वमानी
आज हूँ मैं नाले के समान
अब मैं लोगो के पाप नहीं
उनके अभिशाप को ढोती हूँ
जो रूठी नदी, सूखी नदी
मिट जाएगा सब
नदी, समुंद्र, जंगल सब
जीवन के बहुमूल्य अंग
बचाओ अपनी धरोहर
गंगा को।
