गलियों में हिंदुस्तान देखा है
गलियों में हिंदुस्तान देखा है


रास्ते यहां तमाम संकरी सी,
पर उनमे इका-इक एक
दुनिया बुनते मैंने देखा है,
हाँ गलियों में रह कर ही,
मैंने असली हिंदुस्तान देखा है।
किसी की घर की
राजमे की खुश्बू में मैंने,
किसी के घर के दाल की
खुश्बू को घुलते देखा है,
नगमा चाची के घर बने आचार को
मैंने नैना दीदी के घर खुलते देखा है,
हाँ, गलियों में धर्म निरपेक्षता का
असली धरोहर मैंने देखा है।
बीच रास्ते पर सजा कर पत्थरों का विकेट
दोस्तों संग मैंने कई बार
धोनी सा छक्का मारा है
अब ये समझने की जरूरत नहीं
देश का नाम ऊँचा करता हर बल्लेबाज़ आज
बचपन के गली क्रिकेट से ही निखर कर आया है।
दोस्तों के साथ गली के किनारे बैठ कर
स्कूटी पर, मैंने ठहाको की महफ़िल जमाई है,
और उसी गली किनारे से अपनी महबूब को,
खिड़की पर घंटो ताका है।
इधर मैंने बूढ़ों के खाट पर बैठे,
चुनाव के भविष्यवाणी करते देखे हैं
और बिजली जाते ही औरतों का घरों से निकल कर,
सीरियल के चर्चे करते देखे हैं,
मानता हूं गाँव जैसा भाईचारा कहीं नहीं पर,
शहरों के रूखे मिजाज़ के बीच,
मैंने थोड़ी सही पर गाँव की खुश्बू
इन्हीं गलियों में पायी है।