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Akhtar Ali Shah

Abstract

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Akhtar Ali Shah

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गीत..ओढ तिरंगा घर आया है

गीत..ओढ तिरंगा घर आया है

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माँ का पूत सपूत सिपाही,

ओढ़ तिरंगा घर आया है ।


नैनो के दो दीये जलाकर,

आंगन में माँ पथराई है ।

सूख गई अश्कों की सरिता,

नहीं दूर तक परछाई है ।।

सीना बेशक छलनी है पर,

गर्व यही कुछ कर आया है।

मां का प सपूत सिपाही ,

ओढ़ तिरंगा घर आया है ।।


एक पिता से पूछो कैसा,

लगता उसका कंधा टूटे ।

और बुढापे की लाठी ही,

बीच राह में उससे रूठे ।।

लेकिन वो सैल्यूट कर रहा,

कर वो नाम अमर आया है।

माँ का पूत सपूत सिपाही ,

औढ़ तिरंगा घर आया है ।।


जिसके दम पर गगन चूमती,

प्राण वायु वो निकल गयी है। 

इसीलिए पत्नी टूटी पर ,

यही सोच कर संभल गई है ।।

उसको बेवा भले कर गया,

मांग वतन की भर आया है ।

माँ का पूत सपूत सिपाही,

औढ़ तिरंगा घर आया है ।।


बच्चे तुतलाई बोली में ,

पापा से बतियाते हैं पर ।

इतनी दूर गए हैं पापा,

हाथ नहीं वो आते हैं पर ।।

कौन बताए उन्हें के उनका,

पापा नहीं इधर आया है ।

माँ का पूत सपूत सिपाही ,

औढ़ तिरंगा घर आया है।।



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