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Alok Yadav

Inspirational

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Alok Yadav

Inspirational

ग़ज़ल

ग़ज़ल

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सूप चलनी से भी बढ़कर निकले

छेद उनमें भी बहत्तर निकले

 

दफ्तरों में न मिला एक इंसाँ

कहीं बाबू कहीं अफ़सर निकले

 

धूल उड़ती है क्षितिज ओझल है

तेरी यादों के हैं लश्कर निकले

 

जिनको समझा था तुरुप का पत्ता

वक़्त पड़ने पे वो जोकर निकले

 

हमने बरसों जिन्हें पूजा 'आलोक'

देव मंदिर के वो पत्थर निकले                     

 


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