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Kavita Sharma

Abstract

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Kavita Sharma

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गांव का घर

गांव का घर

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बंया कर रहा बीते कई किस्से

यहां खुशियां बरसती थीं कभी

घर में महमानों का आना जाना

लगा रहता हर रोज ही

रसोईघर से रोज सौंधी सुगंध उठती रहती थी

चुपके से जाकर मां की नजरों से बचकर

मुंह में लड्डू डाल निकल जाते थे बाहर आंगन में

कितनी सारी यादें को समेटे हुए है ये टूटा घर।

मेरे बचपन की पहचान है ये मेरा पुराना घर।


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