एक लड़की की सोच
एक लड़की की सोच


बरसों से बस जिम्मेदारी का बोझ
उठाए जिए जा रही हूँ मैं
गुजरते वक्त ने एहसास दिलाया
कि क्या कर रही हूँ मैं
अब अपने लिए भी कुछ करना चाहती हूँ मैं
ना रोको ना टोको मुझे
उम्मीदों के पंख लगा दूर गगन में
उड़ना चाहती हूँ मैं
बाबा मेरे लिए भी किताबें खरीद दो ना
वहां मेरा भी दाखिला करा दो ना
भाई की तरह विद्यालय जाना चाहती हूँ मैं
माँ कुछ समय और दे दो ना
इतनी जल्दी ब्याह कर
घर नहीं बसाना चाहती हूँ मैं
मुझे थोड़ा और पढ़ने दो ना
पढ़ लिखकर अपने पैरों पर
खड़ी होना चाहती हूँ मैं
हाँ कोख में ही ना मार देना मुझको
इस दुनिया में आना चाहती हूँ मैं।