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Rohit Verma

Abstract Comedy

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Rohit Verma

Abstract Comedy

एक हास्य कविता

एक हास्य कविता

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"अपनी कश्ती हमने ख़ुद डुबाई"

"जब वह घर छोड़ मेरे पास आई"


"अब इतने दिनों बाद आई"

"जब हो गई किसी और से सगाई"

"हम बोले अब चली जाओ नहीं

चाहिए तुम जैसी लुगाई"


"अब कर लो जुदाई क्योंकि

मुझको कोई और पसंद आई"

 "पहले पापा से  पिटवाई"

"अब बोले बन जाओ घरजमाई"

"शक्ल से क्या लगते है हलवाई"

"और अब मेरी याद आई"

"अब रास्ता बदलो क्योंकि

नहीं चाहिए तुम जैसी लुगाई"

"वह पैरो के नीचे झुक कर रोती नज़र आईं और बोली तुम कर लो हमसे सगाई"

"हम बोले पहले दुनिया में मज़ाक बनाई"

"और पहले रिश्ता समझ नहीं पाई"

"वह बोली तोड़ दी चारपाई"

"और नहीं चाहिए हम जैसी लुगाई"

" बस दिल पर तुम्हारा नाम लिखवाई"




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