दूर रहकर पास कितने हम रहे थे
दूर रहकर पास कितने हम रहे थे
दूर रहकर पास कितने हम रहे थे,
बात दिल की दूर से हम कर रहे थे।
सोचते हम रोज़ थे मिलने की लेकिन,
बीच में हालात घर के पड़ रहे थे।
देखकर एक दूसरे की हम तस्वीरें,
हम दिलासे खुद को देकर मर रहे थे।
बात करके रात में एक दूसरे से,
दूर से नजदीक खुद को कर रहे थे।
दर्द कभी दोनों छुपाना सोच लेते,
चेहरे ज़ाहिर सभी गम कर रहे थे।
नींद भी आती हमें थी मगर फिर भी,
जागकर फिक्र दूसरे की कर रहे थे।
सोचते भी हो गया अरसा मगर फिर,
सोचकर गुरबत सबर हम कर रहे थे।
आ गया मेहमान भी घर में मगर हम,
दूर से बस देखकर सब्र कर रहे थे।
वास्ते खुद को बच्चो के रोक लेते,
मगर मिलने की तड़प हम कर रहे थे।
नींद क्यों आती नही खुद को जुदा कर,
हम यही बस सोचकर के मर रहे थे।
खुद यही अफसोस अरशद कर रहे थे,
खुश सभी को देखकर खुद मर रहे थे।

