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AJAY AMITABH SUMAN

Abstract

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AJAY AMITABH SUMAN

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दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-4

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-4

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जिस प्रकार अंगद ने रावण के पास जाकर अपने स्वामी मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चन्द्र के संधि का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था , ठीक वैसे हीं भगवान श्रीकृष्ण भी महाभारत युद्ध शुरू होने से पहले कौरव कुमार दुर्योधन के पास पांडवों की तरफ से शांति प्रस्ताव लेकर गए थे। एक दूत के रूप में अंगद और श्रीकृष्ण की भूमिका एक सी हीं प्रतीत होती है । परन्तु वस्तुत: श्रीकृष्ण और अंगद के व्यक्तित्व में जमीन और आसमान का फर्क है । श्रीराम और अंगद के बीच तो अधिपति और प्रतिनिधि का सम्बन्ध था । अंगद तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के संदेशवाहक मात्र थे । परन्तु महाभारत के परिप्रेक्ष्य में श्रीकृष्ण पांडवों के सखा , गुरु , स्वामी , पथ प्रदर्शक आदि सबकुछ थे । किस तरह का व्यक्तित्व दुर्योधन को समझाने हेतु प्रस्तुत हुआ था , इसके लिए कृष्ण के चरित्र और लीलाओं का वर्णन समीचीन होगा । कविता के इस भाग में कृष्ण का अवतरण और बाल सुलभ लीलाओं का वर्णन किया गया है । प्रस्तुत है दीर्घ कविता "दुर्योधन कब मिट पाया" का चतुर्थ भाग।


कार्य दूत का जो होता है अंगद ने अंजाम दिया ,

अपने स्वामी रामचंद्र के शक्ति का प्रमाण दिया।

कार्य दूत का वही कृष्ण ले दुर्योधन के पास गए,

जैसे कोई अर्णव उदधि खुद प्यासे अन्यास गए।


जब रावण ने अंगद को वानर जैसा उपहास किया,

तब कैसे वानर ने बल से रावण का परिहास किया।

ज्ञानी रावण के विवेक पर दुर्बुद्धि अति भारी थी,

दुर्योधन भी ज्ञान शून्य था सुबुद्धि मति मारी थी।


ऐसा न था श्री कृष्ण की शक्ति अजय का ज्ञान नहीं ,

अभिमानी था मुर्ख नहीं कि हरि से था अंजान नहीं।

कंस कहानी ज्ञात उसे भी मामा ने क्या काम किया,

शिशुओं का हन्ता पापी उसने कैसा दुष्काम किया।


जब पापों का संचय होता धर्म खड़ा होकर रोता था,

मामा कंस का जय होता सत्य पुण्य क्षय खोता था।

कृष्ण पक्ष के कृष्ण रात्रि में कृष्ण अति अँधियारे थे ,

तब विधर्मी कंस संहारक गिरिधर वहीं पधारे थे।


जग के तारण हार श्याम को माता कैसे बचाती थी ,

आँखों में काजल का टीका धर आशीष दिलाती थी।

और कान्हा भी लुकके छिपके माखन दही छुपाते थे ,

मिटटी को मुख में रखकर संपूर्ण ब्रह्मांड दिखाते थे।


कभी गोपी के वस्त्र चुराकर मर्यादा के पाठ पढ़ाए,

पांचाली के वस्त्र बढ़ाकर चीर हरण से उसे बचाए।

इस जग को रचने वाले कभी कहलाये थे माखनचोर,

कभी गोवर्धन पर्वत धारी कभी युद्ध तजते रणछोड़।


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