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Pradeepti Sharma

Abstract

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Pradeepti Sharma

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दर्द- एक राग

दर्द- एक राग

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कतरा कतरा एक रागिनी, 

घुलती है यूँ हौले हौले, 

जैसे हो दबे दबे से शोले, 

एक अनसुनी ध्वनि जैसे ये बबूले, 

पल भर में बनकर बिखरते ये गोले, 

एक सिसकता सा गीत गाते हैँ, 

रुके रुके से ये स्वर सिर्फ़ मनमीत को बुलाते हैँ |



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