दो हिस्सा देश हमारा
दो हिस्सा देश हमारा


अंधों की बस्ती में मशाल लिया फिरता हूँ
बहरों की महफ़िल में बम धमाके करता हूँ
जो था कल तक हिंदुस्तान कैसे बना पाकिस्तान
नेता नहीं पागल हूँ साहब इसलिए रोज़ सोचा करता हूँ।
अंधों की बस्ती में मशाल लिया फिरता हूँ
बहरों की महफ़िल में बम धमाके करता हूँ
जो था कल तक हिंदुस्तान कैसे बना पाकिस्तान
नेता नहीं पागल हूँ साहब इसलिए रोज़ सोचा करता हूँ।