दिव्य दृष्टि
दिव्य दृष्टि
एक अघोरी अभी अभी इस ''कोविड टाइम '' से कुछ साल पहले जागा था नंग घढंग ,
''ब्रह्म मुहूर्त में अपनी अँधेरे में डूबी कंदरा में जमी बर्फ को तोड़ कर निकला
हिमालय के बिना सड़क वाले जंगलो के रास्ते पर पागल प्रेत सा चीख़ता ,हुंकारता भागा था
उसकी युगों की साधना सफल हो गयी थी पर उसकी दिव्य दृष्टि को उसकी आती हुई संतान दिख गयी थी.''
