दिसंबर और जनवरी का रिश्ता
दिसंबर और जनवरी का रिश्ता
कितना अजीब है ना,
दिसंबर और जनवरी का रिश्ता ?
जैसे पुरानी यादों और
नए वादों का किस्सा।
भरपूर विश्वास है
दोनों आसपास है
फिर भी एक साल
की प्यास है
ख़ूबसूरत पलों
के झरोखे दिल में
गुलदस्ते सज़ा लेते हैं।
गुलाबों के बीच ख़ुद
को बगिया बना लेते हैं।
इस कद्र को अपने होने का
एहसास जगा जाता है
गुज़रा साल दिल में
अच्छे कर्मो का हिसाब
किताब भी निखार लेता है।
दोनों काफ़ी नाज़ुक है
दोनो मे गहराई है,
दोनों वक़्त के राही है,
दोनों ने ठोकर खायी है...
यूँ तो दोनों का है
वही चेहरा-वही रंग,
उतनी ही तारीखें और
उतनी ही ठंड...
पर पहचान अलग है दोनों की
अलग है अंदाज़ और
अलग हैं ढंग...
एक अन्त है,
एक शुर
ुआत
जैसे रात से सुबह,
और सुबह से रात।
एक में याद है
दूसरे में आस,
एक को है तजुर्बा,
दूसरे को विश्वास।
जो दिसंबर छोड़ के जाता है
उसे जनवरी अपनाता है,
और जो जनवरी के वादे हैं
उन्हें दिसम्बर निभाता हैं
कैसे जनवरी से
दिसम्बर के सफर में
११ महीने लग जाते हैं
लेकिन दिसम्बर से जनवरी बस
एक पल मे पहुंच जाते हैं !
जब ये दूर जाते हैं
तो हाल बदल देते हैं,
और जब पास आते हैं
तो साल बदल देते हैं।
देखने मे ये साल के महज़
दो महीने ही तो लगते है,
लेकिन...
सब कुछ बिखेरने और समेटने
का वो कायदा भी रखते है...
दोनों ने मिलकर ही तो
बाकी महीनों को बांध रखा है,
अपनी जुदाई को
दुनिया के लिए
एक त्यौहार बना रखा है !