दिल के अमीर
दिल के अमीर
शुक्रगुज़ार करूँ मैं किसका, आज जो कुछ मेरे पास है,
काफी लोग तो दुनिया में उसके लिए भी तरसते उठते है।
दो वक़्त की रोटी नसीब न होती कितनों को,
और हम भोजन में विकल्प लेते फिरते है।
रहने को घर नहीं, सर छुपाने को छत नहीं,
और हम ऐसी पंखे न चले तो पागल हो उठते है।
किसी के माता-पिता नहीं, तो कोई यार दोस्त से वंचित है,
और एक हम है, जो उनसे रूठ जाते है।
पैसों के अमीर तो न जाने कितने रहते हो दुनिया में,
हम तो खुशनसीब है, जो दिल के अमीर हुए जीते है।