दीप की अभिलाषा
दीप की अभिलाषा
मैं दीप प्रज्वलित हूँ
आज इस दीपावली के पर्व पर।
मिटाने को हूँ आई घोर अंधकार,
न सिर्फ तुम्हारे आंगन का
पर तुम्हारे मानों का भी।
पर्व तो है मनाते सभी
पर कितनों ने इसको समझ है?
क्या काफी है,
सिर्फ घर-दूकानों को निर्मल करना?
क्या काफी है,
आँगनों में दिए जलाना?
अरे बंधूवों सुनो!
घर-दूकानों के साथ-साथ
मन की कल्मष को भी
तो साफ कीजिए।
मन मे भी तो एक अपनेपन
का दीप प्रज्वलित कीजिए।
आंगन में दिये जल
ाने के
साथ-साथ नेत्रों में
भी तो एक करुणा का
दीप प्रज्वलित कीजिए।
अर्थ बस इतना सा ही है,कि,
प्यार,बंधुत्व, वात्सल्य
व भाईचारे को निभाओ।
तन -मन की शुद्धि के
साथ तुम खूब दीप जलाओ।
दीपावली पर्व ही है
अज्ञान से ज्ञान के मार्ग
को पहचानना।
अंधेरे से रोशनी की
ओर कदम बढ़ाना।
अधर्म से धर्म की ओर
अग्रसर होना।
मनाओ दीपावली कुछ इस तरह
कि,
सभी मानव जगत में खुशियां
हीं खुशियां बंट जाए।