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धर्म और अधर्म

धर्म और अधर्म

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कमजोर को बचाने के लिए

छल करना भी क्षम्य हैं

धर्म कहता है

अधर्म मिटाना ही मनुष्य का कर्त्तव्य है

रावण ने सीता से किया वो भी छल है

युधिष्ठिर ने गुरु द्रोण से किया वो भी छल है

छल तो छल है और इसका अर्थ धोखा है

फिर ये क्या परिभाषा है

एक छल अधर्म है और एक धर्म है


सोचने की बात है ऐसा क्यों है

कमजोर को बचाना ही मानव धर्म हैं

अन्याय को मिटाना ही उनका कर्तव्य है

इसलिए कमजोर को बचाने के लिए

छल करना भी क्षम्य है

रावण के समक्ष सीता कमजोर थी

इसलिए उसका किया छल अधर्म है

कौरवों ने पांडवो का छीना सब कुछ है

युधिष्ठिर ने जो किया वो छल नहीं धर्म है

दुष्ट के दमन के लिए उठा एक कदम है


कमजोर को बचाना ही धर्म है

छल से या बल से अन्याय को मिटाना

मानवता का एकमात्र धर्म है


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