देख लो (गज़ल)
देख लो (गज़ल)
नफरतों का शहर देख लो
रो रहा हर बशर देख लो।।
लाश बेटे की है काँधे पे,
माँ का लख्ते जिगर देख लो।।
आज बोझिल हुई साँस भी,
जिन्दगी की डगर देख लो।।
रोज कानून बनते नये,
चोर भी है निडर देख लो।।
रूग्ण काया बिना पूत के,
बाप का अब गुजर देख लो।।
तेज रफ्तार सी होड़ में,
हादसों का नगर देख लो।।
आज मजबूर हर आदमी,
टैक्स का यह असर देख लो।।
बात धन से ही आगे बढ़े,
आज की यह खबर देख लो।।
मुस्कुराहट मिलेगी तभी,
प्यार में ही गुजर देख लो।।
गम अँधेरे बिगाड़ें न कुछ,
"पूर्णिमा" का सफर देख लो।।