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Asha Pandey 'Taslim'

Abstract

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Asha Pandey 'Taslim'

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डोर

डोर

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मेरे और तुम्हारे बीच

ये जो चुप की डोर है

तान पे बराबर रखना

एक सन्नाटा सोता है

उस तनतने पर

टूट की गाँठ में

रुकावट का भूत

सहमा देता है

मुसाफिर हो तुम भी

मुसाफिर हैं हम भी

तय होगा

खामोशी के चौपाल पर

सारा मामला

नगाडो़ं से दूरी ज़रुरी है।


साहित्याला गुण द्या
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