डी पी
डी पी
वो बार बार
अपनी डी पी बदलता है,
पर डीपी मे अपनी
शक्ल नही रखता है।
बस कभी कोई कोट
कभी कोई शेर रखता है।
मैं सोचती हूं की
ये क्या बचपना करता है।
उसके डीपी जाने किस
उम्मीद मे बदलती है
लगता है उसके
जहन का
पन्ना खोलती है।
सब कहते हैं
उस अकेले का दिल
उसकी आँखों मे झलकता है,
वो अब भी सबसे
नजरे झुकाये मिलता है।
पूछा था मैंने
इन दोनो बातों का
सबब एक दिन
अपने घर से,
बिस्तर पर पड़े ,
इनके हाथों से
लेते हुए
दिन की
दूसरी एस्प्रिन।
फोन पर ,
वो खामोश था
बोला पहले
ठीक हो जाओ,
अपने उनको
परेशान न करो।
अचानक उसके
इस तरह खामोश
होने पर
मुझे याद आया था
मेरा लडकपन मे
उसे छेड़ते कहना।
क्या ये दिल
हमेशा मेरा है ?
क्या मैने ही रहना है ?
क्या तुमने यहां
मुझे ही रखना है ?
और उसका झट से
"हाँ" कहना
और मेरा ठठा के
"मैं देखूंगी" कहना
उसका अपलक
खामोश हो देखना ।
क्या वो
नादां आज भी
पिछ्ली
बातों को धरे बैठा है,
वो धीरे से
"हाँ " बोला था
कुछ पल
जाने क्या सुनना
चाहता था।
कान अब
बन्द लगते है
अब भी बातों के
कोई अर्थ नही लगते हैं,
आज उसे
डांटना चाहती हू
मगर लफ्ज पराये लगते है।
एक
डी पी उसने
आज फिर बदली है
मगर अपनी
तस्वीर फिर भी
नहीं डाली है।
नीचे लिखा है
आज भी तू,
तेरी मोहब्बत,
तेरी इज्जत,
मेरी जिम्मेदारी है,
तुझसे आज भी
पक्की यारी है।
