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प्रवीन शर्मा

Abstract

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प्रवीन शर्मा

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ढीठ

ढीठ

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हाजिर जवावी में सानी नही कोई

वो बोलती है तो मैं सुनता हूं

वो बताती जाती है कब क्या कैसे

एक मैं हूं जो बैसे वैसे बुनता हूँ

मेरी हंसी मेरी खुशी का कोई मोल नही

उसे फर्क नही, मैं किसे चुनता हूँ

इतने वक़्त में तो बच्चे भी सीख जाते है

पता नही क्यूँ मैं गलत गिनता हूँ

जिंदगी कब से सिखाती है बताती है समझाती है

ढीठ हूँ मैं, ऐसा ही हूँ, कहाँ सुनता हूँ.


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