दामिनी
दामिनी
भारत भूमि में कैसी ये विडंबना
नौनिहाल पर भी होते है बलात्कार
खुले आम घुमते है खूनी दरिंदे
कब जाग उठेगी सोई सरकार
क्यूं औरत को खिलौना समझके
उनको तार तार कर देते है
आए दिन नारी पर अत्याचर
क्यूं उनका सम्मान नही कर पाते है
सब खोखली दलीलें
पेश की जाती हैं
क्यूं औरत की आवाज़
कोर्ट में दबाई जाती हैं
दिल दहला देने वाली घटनाए
हर रोज यहां घटती है
यू सिसक के हरदम
औरत दम तोड़ देती हैं
अंधा कानून और
अंधी न्याय व्यवस्था
कब बदलेगी नारी की
भारत भु मे अवस्था
ए नारी मत रो तू
उठ, बन तु रणरागिनी
आकाश में चमकने वाली
हो जा तू दामिनी
तु दुर्गा, तु चंडिका
तु महा काली
हैं तु भवानी, जगदंबा
ना समझ खुदको भोली भाली ।
