दादा परशुरामजी की स्तुति
दादा परशुरामजी की स्तुति
हाथ में है परशु,नाम है उनका परशुराम
अधर्म का जिन्होंने किया था काम-तमाम
अक्षय-तृतीया को उन्होंने जन्म लिया,
पूरे जग को उन्होंने जगमग रोशन किया
माता थी रेणुका, पिता थे जन्मदग्नि महान
सहस्त्रबाहु की सहस्त्र भुजाएँ काट दी
पिता के बदले की अग्नि ऐसे ठंडी की
एक बार नही 21 बार अधर्म का नाश किया
ऐसे ही नहीं उन्होंने अपना नाम परशुराम किया
अधर्मी राजाओं पर उन्होंने लगा दी थी लगाम
ऐसे धीर,वीर बहादुर थे वो गुणों की खान
हम सभी ब्राह्मणों के सिरमौर,
जैसे श्री कृष्ण के सिर पर मुकुट मोर
आज भी वो अधर्म से लड़ने की शिक्षा देते है
वो इस जगत में सत्य-धर्म की है एक कोर
आओ सब दादा परशुराम को शीश नवाये,
वो है श्री हरि के अवतार की सुहानी डोर
असत्य से न डरेंगे,अधर्म के आगे न झुकेंगे
ले नाम दादा का खत्म करेंगे असत्य का शौर।