चलो वहां
चलो वहां


चलो वहां
जहां नवीन दुनिया हो
जहां के लोग घूम रहे हों
पूर्णता के असीमित धरातल पर
और ढूंढ रहे हों
जाने में या अनजाने में
यहां के जैसी त्रासदी की दुनिया।
चलो वहां
जहां ऊंची इमारतें नहीं
जहां हो छोटी सी कुटिया
और न हो उसमें ऐसी जैसी मशीनें
जिसमें निकलती है नम और सांद्र वायु
उसमें हो एक छोटा सा सा झरोखा
और उस झरोखे से आती हो
पूर्वा की बयारें।
चलो वहां
जहां न सुनाई दे
महानगरों की न थमने वाली आवाजें
जहां सुनाई दे
सुनसान रातों में
पेड़ से ओश की टपकने की
आवाजें
कोयल की आवाजें में,
मोर की आवाजें
और पंछियों के शोर।
चलो वहां
जहां के लोग बेईमान न हों
जहां के लोग न चाहते हो
हड़प लेना पूरी दुनिया को
जहां के लोग चाहते हों
बांटकर खाना,
मिल कर रहना
एक दूसरे से, एक दूसरे से।
चलो वहां
जहां मनुष्य रहते हों
जहां रहकर शायद
हम भी मनुष्य बन जाएं।