चल शब्दों के पार
चल शब्दों के पार
रहते हम जिस दुनिया में वो है शब्दों का संसार
सच्ची शांति ना मिलेगी यहां पर शोर है बेशुमार
तनाव भरा है जीवन सारा पल भर का नहीं चैन
प्रतिदिन बढ़ता ही जाता समस्याओं का आकार
सन्तोषी जीवन की कल्पना करना हुआ कठिन
नजर आती सबके मन में लोभ वृत्ति की भरमार
कर्तव्य पालन करना सबको लगने लगा है बोझ
जागृत रहते सभी यहाँ क्या क्या है मेरे अधिकार
विनाशी इच्छाएं ही जगाती मन में लोभ लालच
इसीलिए सब करते ही रहते हर दिन पाप हज़ार
रोग लगे हैं तन मन को सुख चैन सभी ने गंवाया
पांच विकार सताते सबको मन में भरकर हुंकार
पंच तत्वों का तन ही कारण बना समस्याओं का
तन का भान मिटाकर अब तूँ चल शब्दों के पार।