चिड़िया का घोंसला
चिड़िया का घोंसला
गली मे स्थित नीबू के पेड़ पर बुलबुल के लाल अण्डे देखकर मन पुरानी यादों मे खो गया. जब दरवाजे पर मेरे पर दादा जी का लगाया हुआ बहुत बड़ा आम का पेड़ था और मेरे द्वारा अमरूद जामुन बढ़हल कटहल सागौन शरीफा नीबू नारंगी बेल हर सिंगार गुड़हल और नाना प्रकार के फूल बादाम जो पिता जी ने दिल्ली से लाकर लगाया था. इन पर आने वाले फलों व फूलों से घर भरा रहता था. कहते है यदि फल बहुत मीठा होता है तो उसमे कीड़े लग जाते है लगता है कुछ वैसा ही रहा हो नही पता किंतु उस आम के पेड़ पर कीड़े लगने लगे जिसके मोटी डाल पर हर सावन मे मेरा झूला पड़ता था उस समय मुझमे जादा समझ नही थी किन्तु उस पर लगे बड़े बड़े चिड़ियों के घोसले देख मै एक बात सोचती थी की यदि पेड़ नही रहा तो क्या होगा?
मेरा झूला नही पड़ा कोई बात नहीं लेकिन चिडिया का घर उजड़ गया तो वो रात मे कहाँ सोयेगी उसके छोटे छोटे चूजे कहाँ जायेंगे उन्हे बिल्ली खा जायेगी या कोई बड़ी चिड़िया अथवा साँप उन्हे खा जायेगा मुझे कुछ इन्तजाम करना चाहिये ताकी चिड़िया का घर उजड़ने ना पाये,तब मेरी उम्र स्कूल जाने योग्य नही थी अर्थात मैं बहुत छोटी थी लेकिन रास्ते मे कही भी गुठलियों से जमे आम नीम जामुन जो भी मिलता उखाड़ के लाती और आम के पेड़ के इर्द गिर्द लगा देती ताकी आम का पेड़ गिरने पर चिड़ियों का निवास बचा रहे।इस प्रकार अधजमे दाँतो की उम्र से पेड़ लगाती रही. हजार पेड़ लगाती तो दो चार विकसित होते रहे फिर तो धीरे धीरे तजुर्बा और तरीका परिपक्व होता रहा फल ,फूलों के पेड़ो का एक अच्छा खासा बड़ा बगीचा लगा डाला। ना जाने कितने पेड़ आज तक लगाती चली गयी। वृच्छा रोपण मेरे भोजन और पानी की भाँति हो गये।मेरे लगाये बाग को लोग मधुवाटिका कहा करते थे हाँ क्योंकि मेरा घर का नाम मधू ही था।।